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Sunday, February 22, 2009

waqt,paisa ,rishtey,(read it calmly)

जिन्दिगी के इन रास्तों पर इतना आगे निकल आये हैं...
अपने कह पाने वाले रिश्तों को भी दूर छोड़ आये हैं...

इस पैसे की चाह में ये इंसान कुछ ऐसा भाग रहा है .....
अपनों से क्या खुद से भी नहीं मिल पा रहा है....
पहले माँ की एक फटकार भी दुश्मन लगती थी ....
पर अब उसी माँ के एक दीदार को तरसते हैं....
माँ का हमको प्यार करना और बातें करना .....
अब सिर्फ फ़ोन पर ही सिमट गया है.....
अब क्या करें दोस्तों ........
ये इंसान ,इंसान न होकर ,मशीन बन गया है...
बचपन का वो खिल खिलाकर कर हँसना छूट गया...
अब तो हँसने के लिए भी वक़्त बचाना पड़ता है ....
दूर तक ये निगाह किसी को तलाशती है.....
पर काम की फिक्र में वापस आ जाती है....
क्या सच में ये पैसा इंसान से भी बड़ा हो गया है...????
जो इस पैसे की चाह में वो जिंदगी जीना भी भूल गया है....
माना की जीवन में पैसा बहुत ज़रूरी है....पर.......
पैसे से इंसान मकान खरीदता है घर नहीं ....
फूल मिल जाते हैं खुशबू नहीं ....
पैसे से इंसान मिलते हैं ..उसका प्यार नहीं ....
अब कहो की की जिंदगी से अब भी प्यार नहीं?????????????

माना की तुम्हारे पास ज़रा भी वक़्त नहीं ....
पर थोडा सोचो की क्या तुम्हारे माँ-बाप को तुम्हारी ज़रूरत नहीं ?
कुछ लोग अक्सर ऐसी बातों हो हस कर उडा देते हैं...
पर तनहा होने पर बहुत पछताते हैं....
अपनी ख़ुशी में दूसरों की ख़ुशी तलाशना थोडा मुश्किल है....
पर दूसरों की ख़ुशी में अपनी ख़ुशी आसानी से मिल जाती है......

विपुल (साहिल)

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