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Sunday, February 22, 2009

Parinda

एक दिन यूँ ही तन्हा बैठे बैठे ..ख्यालों में खोए खोए ...
....नज़र पड़ी उस बेज़ुबान ....परिंदे पर....
अपने में खुश, मद मस्त , बेखौफ़ , अपने पंख फैलाए .....
इस खुले आकाश में उड़ा जा रहा था .....
.............और शायद ...........
इस इंसानियत को हस हस के चिड़ा रहा था ...

एक इंसान जिसको उपर वाले ने सबसे अक्लमंद बनाया....
इस जहाँ को अमन और चैन के काबिल बनाया....
पर ए नादान इंसान ....क्या तुझे इतना समझ ना आया...
जो तूने खुद को हिंदू ..मुस्लिम ...है बनाया....
बनाने वाले ने तो सिर्फ़ इंसान और ज़मीन थे बनाए ....
पर उस ज़मीन को तूने ही था शरहदों में बाँटा...
क्यूँ एक इंसान ...दूसरे के लहू का प्यासा है.....
कभी दहशत में तो कभी दंगों में अपना हर लम्हा काटा है ....

आख़िर कब तक .....
दूसरे के किए से खुद को जलाता रहेगा हिन्दुस्तान....
अंत तेरा आया है ...समझ जा ए नासमझ पाकिस्तान .......
गर अपने पे आ गया हिन्दुस्तान का नौजवान......
तू सोच ले तेरा क्या हस्र होगा बेबकूफ़ पाकिस्तान...
मुट्ठी भर हो कर ना जाने क्यूँ इतना उछालता है तू....
हमारी मुट्ठी अगर बन गयी तो तेरा मुह तोड़ देंगे ए पाकिस्तान....
यूँ हमारे तूफान हो ऐसे ना ललकार .....
जो चल पड़ा तूफान तो खाक में उड़ जाएगा पाकिस्तान.....
तेरे जिन्ना और मुस्सररफ को तो बीच चौराहे पे मारेंगे ....
दोबारा आँख उठा के देखा तो ...आँख निकाल देंगे ....

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