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Sunday, February 22, 2009

dil - e- naadan

अपनी इस नादानी को ...वक़्त का फेर न कहना ......
....तेरी इस नादान सूरत ने तो न जाने कितनो को घायल कर दिया....

यूँ तेरी नादानी को न समझना ...मेरी सजा बन गयी.....
.....इस नाचीज़ की जान गयी ...और तेरी वो अदा बन गयी....

क्यूँ सताते हो किसी को इतना ..की बेचारा खुद का भी न हो पाए.....
....कौन है ऐसा जो तुमको हम से ज्यादा मुह्हबत कर पाए.....

तेरी एक ना से तो मैंने वो खोया, जो कभी मेरा था ही नहीं....
....पर तुने तो इस ना से वो खोया है, जो शुरू से सिर्फ तेरा था ....

यूँ किसी की बे इन्तहां मुह्हबत पाना ...तेरी खुश किस्मत है....
.....पर इ नादाँ ...किसी को उतना ही प्यार करना तो खुदा की इबादत है.......साहिल

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