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Monday, December 7, 2009

मेरा चाँद ...

शुक्रगुज़ार है ये साहिल उस खुदा का , जो वो तुझे मेरी ज़िंदगी में लाया,
......तेरे इस हसीन चेहरे हो मेरी आदत है बनाया,
सारे जहाँ का नूर तुझमे समाया है...इसे देखकर तो वो चाँद भी शरमाया है...
....जलता है सारा आसमान तेरी चाँदनी से...
..........क्यूंकी मेरा चाँद सिर्फ़ मेरी ज़िंदगी रोशन करने आया है..... आपका साहिल

Saturday, May 2, 2009

...आदत .....

इक आदत सी हो गयी है जीतने की.....
....किअब हारना बर्दाश्त नही...
इक आदत सी हो गयी है तुझे देखने की....
......कि तुझे बिन देखे चैन आता नही...
उस भवरें को तो फूलों की आदत है...
...क्या सच में वो ही उसकी असली चाहत है??
उस फूल की आदत है भवरें को प्यार देना ...
....भवरें की आदत बन गया है उस प्यार को निभाते रहना .....
क्यूँ किसी की आदत को आदत बना पाना इतना मुश्किल होता है...
...क्यूँ की इसी से सच्चा इश्क़ ज़ाहिर होता है....
अक्सर चाहत की ये आदत ..आशिक़ का दिल दुखती है..
...जाने अंजाने उसकी याद आ ही जाती है...
अब नादिया की तो आदत है दरिया में समा जाना...
...बे-परस्त बहते जाना ...और कभी ना इतराना .....
आदत किसी को बनाना है अपनी तो ऐसी बनाओ...
....तकलीफ़ ना हो उस से ...और खुद को भी खुश रख पाओ...
अब लिखना आदत सी बन गया है मेरी...
....ताकि दिल से निकाल पाउन ये मुहब्बत तेरी....
अब मेरी आदत को तो तेरी आदत की आदत है...
....क्या तेरी भी मेरी जैसी कोई आदत है...????............साहिल

Friday, May 1, 2009

...दूरियाँ .....

दूर जा रहे हैं वो हमसे , कि किसी को वादा कर दिया,
.....पहले ही तन्हाईयां कम ना थी ....जो तुमने फिर से तन्हा कर दिया,...
हमको तेरी यादों का नही..... तेरा साथ चाहिए.......
.......अगर यकीन ना हो तो बीता वक़्त याद फरमाइए....
जब हमारी नज़रें तुमको उस भीड़ में ढूँढा करती थी....
......तुम भी सब को भूल कर हमारे पास आ जाया करते थे.....
वो वक़्त कितना अजीब था ...जब तू मेरे करीब था.....
....तब ना हमने कुछ कहाथा , ना तुमने कुछ समझा था.......
आज जान करभी सब कुछ ...तुम चले ही जाओगे ...
.....हमको फिर ख्वाबों से निकाल कर....तन्हा कर जाओगे.....
पर शायद दूर जाकर तुम हमको भूल जाओगे...
.......पर दावा है हमारा कि...इतनी आसानी से हमको ना भुला पाओगे...

इंतज़ार तेरा हमेशा रहेगा हमको.....
.....जब भी आओगे वापस...हमको यहीं खड़ा पाओगे.........साहिल

Saturday, April 4, 2009

...अदायगी या इनायत? ....

अदायगी उसकी ऐसी की कितनो को दीवाना कर जाए...
....नज़र उठाये तो कितनो को मदहोश कर जाए ...
इनायत तो तब हो उपर वाले की .....
...की हम उनको कहें और वो इनकार न कर पाएं.....

उसका गुमसुम रहना दिल में कई सवाल जगाये....
....न जाने क्यूँ इस खामोशी में ये दिल बस उसका ही होता जाए....
यूँ उसके लवों से हर लफ्ज़ निकले ये ज़रूरी नहीं....
पर इतनी इनायत कर ऐ खुदा...की ये दिल उसकी खामोशी को भी समझ पाए ...

कहना वो भी बहुत कुछ चाहे ....न जाने क्यूँ वो न कह पाए...
.....किसी को पाकर बिछड़ जाने का दर्द शायद उसको भी है सताए...
अब और इंतज़ार तो मेरा दिल भी न सह पाए....
...कहीं ऐसा न हो की आप आयें और हम खामोश हो जाएँ......साहिल

Tuesday, March 31, 2009

...शिकायत....

शिकायत करूँ मैं कैसे तुझसे....
....गिला अब करूँ मैं कैसे?
तुझको तो मेरे दर्द का एहसास भी नही ....

बस कुछ दूर तक मैं चलता गया....
...सोचा था की शायद तेरा साथ होगा...
पर ना तू थी ना तेरा साया,
....बस था तो..मैं और मेरा साया....

कुछ दूर जाने के बाद सोचा था मैने ,
...अब वापस जाने का वक़्त है....
पर सच्चाई से रूबरू होने के बाद पता चला ,
उस मोड़ से वापस आना मुमकिन ही ना था ....

क्या मुमकिन है, सागर की लहरों का बिल साहिल से मिले लौट आना, ???
....ज़िंदगी में आगे निकलने के बाद ,वापस लौटना बहुत मुश्किल होता है....
क्यूंकी तब तब तक आपके दिल पर...
........आपका नही ..किसी और का राज़ होता है....साहिल

Sunday, February 22, 2009

dil - e- naadan

अपनी इस नादानी को ...वक़्त का फेर न कहना ......
....तेरी इस नादान सूरत ने तो न जाने कितनो को घायल कर दिया....

यूँ तेरी नादानी को न समझना ...मेरी सजा बन गयी.....
.....इस नाचीज़ की जान गयी ...और तेरी वो अदा बन गयी....

क्यूँ सताते हो किसी को इतना ..की बेचारा खुद का भी न हो पाए.....
....कौन है ऐसा जो तुमको हम से ज्यादा मुह्हबत कर पाए.....

तेरी एक ना से तो मैंने वो खोया, जो कभी मेरा था ही नहीं....
....पर तुने तो इस ना से वो खोया है, जो शुरू से सिर्फ तेरा था ....

यूँ किसी की बे इन्तहां मुह्हबत पाना ...तेरी खुश किस्मत है....
.....पर इ नादाँ ...किसी को उतना ही प्यार करना तो खुदा की इबादत है.......साहिल

intzaar....ab aur nahi ....

इंतज़ार ना करो उसके आने का ...
उसको तो अफ़सोस भी नही तुझसे बिछड़ जाने का ...
मत कराए इंतज़ार इतना कि ....
आप आए और हम खामोश हो जाएँ.....

इस बेदर्द दुनियाँ में हर किसी को इंतज़ार है ....
किसी को कहीं जाने का ...तो किसी को किसी के लौट आने का ...
किसी को कुछ पाने का ..तो किसी को कहीं खो जाने का ...
इंतज़ार ....इंतज़ार...और बस इंतज़ार....

धरती का प्यासा इंतज़ार तो ये ादल पूरा करता है...
इक अरसे की तड़पन को इन बूँदों से भरता है....
इन तितलियों का इंतज़ार तो ये ूल करता है ...
पर उसकी ज़िंदगी का इंतज़ार बस कुछ दिन ही चलता है....

एक छोटा बcचे को जल्दी बड़े होने का इंतज़ार है...
और यहाँ बड़े होकर भी बcचे की रह खेलने का मन करता है ...
......जब भी यहाँ बैठे बैठे उस पहाड़ को देखता हूं ...
तब ख्याल आता है कि...क्या उस हाड़ को भी आसमाँ का इंतज़ार है....?
इंतज़ार.....इंतज़ार...और बस इंतज़ार..............

कभी कभी ये इंतज़ार भी सपना लगत है....
इसको पूरा करना भी एक इंतज़ार लगता है....
अपने सपनो में सभी खोए हैं ऐसे ...
कि सपने में सपना आना भी एक इंतज़ारलागता है.....
इंतज़ार .....इंतज़ार....और बस इंतज़ार......

विपुल(साहिल)

waqt,paisa ,rishtey,(read it calmly)

जिन्दिगी के इन रास्तों पर इतना आगे निकल आये हैं...
अपने कह पाने वाले रिश्तों को भी दूर छोड़ आये हैं...

इस पैसे की चाह में ये इंसान कुछ ऐसा भाग रहा है .....
अपनों से क्या खुद से भी नहीं मिल पा रहा है....
पहले माँ की एक फटकार भी दुश्मन लगती थी ....
पर अब उसी माँ के एक दीदार को तरसते हैं....
माँ का हमको प्यार करना और बातें करना .....
अब सिर्फ फ़ोन पर ही सिमट गया है.....
अब क्या करें दोस्तों ........
ये इंसान ,इंसान न होकर ,मशीन बन गया है...
बचपन का वो खिल खिलाकर कर हँसना छूट गया...
अब तो हँसने के लिए भी वक़्त बचाना पड़ता है ....
दूर तक ये निगाह किसी को तलाशती है.....
पर काम की फिक्र में वापस आ जाती है....
क्या सच में ये पैसा इंसान से भी बड़ा हो गया है...????
जो इस पैसे की चाह में वो जिंदगी जीना भी भूल गया है....
माना की जीवन में पैसा बहुत ज़रूरी है....पर.......
पैसे से इंसान मकान खरीदता है घर नहीं ....
फूल मिल जाते हैं खुशबू नहीं ....
पैसे से इंसान मिलते हैं ..उसका प्यार नहीं ....
अब कहो की की जिंदगी से अब भी प्यार नहीं?????????????

माना की तुम्हारे पास ज़रा भी वक़्त नहीं ....
पर थोडा सोचो की क्या तुम्हारे माँ-बाप को तुम्हारी ज़रूरत नहीं ?
कुछ लोग अक्सर ऐसी बातों हो हस कर उडा देते हैं...
पर तनहा होने पर बहुत पछताते हैं....
अपनी ख़ुशी में दूसरों की ख़ुशी तलाशना थोडा मुश्किल है....
पर दूसरों की ख़ुशी में अपनी ख़ुशी आसानी से मिल जाती है......

विपुल (साहिल)

दर्द-ऐ-बेजुबान पत्थर

जब टूट कर कोई कांच किसी पत्थर पे खनकता है....
..सोचो की दर्द उनमे ..किस बदनसीब को ज्यादा होता है....

कांच तो हर ओर बिखर कर ये दर्द सब को दिखाता है...
...पर बेजुबान पत्थर तो दर्द को सीने में दबाता है....

चाह कर भी दर्द बयां कर न पाए वो दुनिया से ....
...जुल्मी दुनिया को तो सारा दर्द बस उस कांच का दिखता है....

दूर रो कर जब कभी अपना दर्द-ऐ-हाल बयां करते है....
...दुनिया वाले पत्थर के रोने को भी झरने का नाम दे देते हैं....

जो बदलना चाहे साहिल दुनिया के इस दस्तूर को....
...ये दुनिया वाले सारे मिलकर बदल देंगे साहिल के इस फितूर को....साहिल

Parinda

एक दिन यूँ ही तन्हा बैठे बैठे ..ख्यालों में खोए खोए ...
....नज़र पड़ी उस बेज़ुबान ....परिंदे पर....
अपने में खुश, मद मस्त , बेखौफ़ , अपने पंख फैलाए .....
इस खुले आकाश में उड़ा जा रहा था .....
.............और शायद ...........
इस इंसानियत को हस हस के चिड़ा रहा था ...

एक इंसान जिसको उपर वाले ने सबसे अक्लमंद बनाया....
इस जहाँ को अमन और चैन के काबिल बनाया....
पर ए नादान इंसान ....क्या तुझे इतना समझ ना आया...
जो तूने खुद को हिंदू ..मुस्लिम ...है बनाया....
बनाने वाले ने तो सिर्फ़ इंसान और ज़मीन थे बनाए ....
पर उस ज़मीन को तूने ही था शरहदों में बाँटा...
क्यूँ एक इंसान ...दूसरे के लहू का प्यासा है.....
कभी दहशत में तो कभी दंगों में अपना हर लम्हा काटा है ....

आख़िर कब तक .....
दूसरे के किए से खुद को जलाता रहेगा हिन्दुस्तान....
अंत तेरा आया है ...समझ जा ए नासमझ पाकिस्तान .......
गर अपने पे आ गया हिन्दुस्तान का नौजवान......
तू सोच ले तेरा क्या हस्र होगा बेबकूफ़ पाकिस्तान...
मुट्ठी भर हो कर ना जाने क्यूँ इतना उछालता है तू....
हमारी मुट्ठी अगर बन गयी तो तेरा मुह तोड़ देंगे ए पाकिस्तान....
यूँ हमारे तूफान हो ऐसे ना ललकार .....
जो चल पड़ा तूफान तो खाक में उड़ जाएगा पाकिस्तान.....
तेरे जिन्ना और मुस्सररफ को तो बीच चौराहे पे मारेंगे ....
दोबारा आँख उठा के देखा तो ...आँख निकाल देंगे ....

मिजाज़-ऐ-साहिल

1) उनकी नज़रों ने मदहोश ...और मुस्कान ने मस्ताना किया......
...हम तो उनको अपना मान ही बैठे थे......शुक्र-ऐ-खुदा ..
........उन्होंने आशोब(confusion) से हमको बचा लिया.....साहिल


2) हमारे मिजाज़ को ऐ दोस्त पैमाने से न मापना ....
.....हमारा मिजाज़ तो खुद साकी भी न समझ पाया...
पिलाते पिलाते ...खुद कमबख्त दिल से लड़खड़ा गया....
....खुद तो डूबा .....हमको भी इश्क के नशे में डूबा गया....


3) तेरी रूश्वाई को भी सीने से लगाया है....तेरी हर नज़्म को होठों से लगाया है,....
...लोग कहते हैं की साहिल दीवाना है...बता दे उन दुनिया वालो को ...
.........भला साहिल की दीवानगी का भी कोई पैमाना है????


4) मजबूर तुम भी हो मजबूर हम भी हैं.....
फर्क सिर्फ इतना है कि..तुम दिल से तो हम हालात से मजबूर हैं...
तुम हँस कर भी रोते हो...हमे तो रोकर भी हँसना पड़ता है....

न जाने जिंदगी ने हमारे रस्ते हो कहाँ को मोडा है....
तभी तो सारा फैसला हमने वक़्त पर कर छोडा है..... .साहिल

इक अंजान चेहरा......

हर लम्हा ,हर कतरा तेरा चेहरा नज़र आता है,
वो हर पल मुझे तेरा दीवाना बनाए जाता है ,
तेरी एक मुस्कान हर उलफत में दवा बन जाती है ,
......और ना चाहते हुए भी दिल ही गहराई में समा जाती है....

उसका मुस्कुराना दिल में कई ख्वाब जगाता है,
...अंजाने में ये दिल ना जाने कब उसका होता जाता है....
पहले ही काबू में न था ये दिल मेरा ,
....अब तो हर कदम की आहट तेरी समझ कर मचल जाता है ,

सारे ज़माने में हंगामा हो गया , जो तुझे हमने अपना कह दिया ,
......बिन जाने तेरी रज़ा तुझे अपने दिल में बसा लिया ,
अब ना कहकर मेरी मुहब्बत को बदनाम ना करना ,
.....इक गुल को उजाड़ कर दूसरा गुलिस्ताँ आबाद ना करना ,

क्यूँ किसी से इतनी मुहब्बत करता है ए साहिल,
...की तेरी मुहब्बत ही तेरे लिए उलफत बन जाती है ,
लड़ कर ज़माने से आना चाहे वो पास तेरे ,
....पर ज़माने की सरपरस्ती ही तेरी मुहब्बत की क़ातिल बन जाती है..............साहिल

muhabbat

एक प्यारा सा एहसास है मुहब्बत, दिल के ज़ज्बात हैं मुहब्बत,
....कर के देख ए ज़ालिम, एक हसीन ख्वाब है ये मुहब्बत,
खुद को खो कर किसी को पाना है मुहब्बत,
..........किसी के ख्वाबों को अपनी यादों में बसाना है मुहब्बत,

दो दिलों का एक हो जाना है मुहब्बत ,
......किसी को पाक दिल से चाहना है मुहब्बत,
ख्वाब अपने हैं, पर उन ख्वाबों में उसका आना है मुहब्बत,
.....कभी कभी कुछ हार कर उसका साथ पाना है मुहब्बत,

उसके दूर जाने के एहसास से दिल का मचल जाना है मुहब्बत,
.....उसके हर एहसास को अपना बनाना है मुहब्बत,
हर उलफत में दवा बने , वो सहारा है मुहब्बत,
......जो इस साहिल को लिखने पे मजबूर करे........वो ज़िंदा एहसास है मुहब्बत.......(साहिल)