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Saturday, April 4, 2009

...अदायगी या इनायत? ....

अदायगी उसकी ऐसी की कितनो को दीवाना कर जाए...
....नज़र उठाये तो कितनो को मदहोश कर जाए ...
इनायत तो तब हो उपर वाले की .....
...की हम उनको कहें और वो इनकार न कर पाएं.....

उसका गुमसुम रहना दिल में कई सवाल जगाये....
....न जाने क्यूँ इस खामोशी में ये दिल बस उसका ही होता जाए....
यूँ उसके लवों से हर लफ्ज़ निकले ये ज़रूरी नहीं....
पर इतनी इनायत कर ऐ खुदा...की ये दिल उसकी खामोशी को भी समझ पाए ...

कहना वो भी बहुत कुछ चाहे ....न जाने क्यूँ वो न कह पाए...
.....किसी को पाकर बिछड़ जाने का दर्द शायद उसको भी है सताए...
अब और इंतज़ार तो मेरा दिल भी न सह पाए....
...कहीं ऐसा न हो की आप आयें और हम खामोश हो जाएँ......साहिल