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Saturday, July 17, 2010

SAAHIL is back....ख्वाब या हक़ीकत........

क्या ख्वाब है क्या हक़ीकत....
....जो ख्वाब सच हुए वो हक़ीकत ...और जो ना हो पाए तो यादें बन जाते हैं....

यूँ तो ख्वाबों को पूरा होते और बिखरते देखा हैं मैने...
....कुछ उम्मींदो में रातों को गुज़रते देखा है मैने ....
कुछ ख्वाब जो मुझे रात दिन सोने नही देते....
.....कुछ जो सब कुछ होकर भी मुझे मेरा होने नही देते...

अब कुछ ख्वाबों को हक़ीकत बनते देखा हैं मैने ....
....किसी की मुस्कुराहट को अपना बनता देखा है मैने ....
यूँ तो ज़रूरी नही कि ..सारे ख्वाब मुकम्मल हों .....
......पर हक़ीकत के लिए ख्वाबों को जलता देखा है मैने ...

जब कोई ख्वाब टूटकर बिखरता है तो...बहुत तक़लीफ़ देता है...
...पर जब वही ख्वाब हक़ीकत बने तो...बे इम्तिहान खुशी देता है...
हर इंसान के ज़िंदगी में बहुत से ख्वाब होते हैं....
.....कुछ अपने तो कुछ अपनो के लिए होते हैं....

यूँ तो ख्वाबों की दुनिया ....हक़ीकत से बेहद जुदा होती है....
...गर ख्वाब ही ना हो तो ज़िंदगी..ज़िंदगी नही ...कोरा कागज ही होती है..
अब सोचना क्या...अपने कोरे कागज को ख्वाबों से सज़ा डालो ...
....जो तुरंत पूरा ना भी हुए तो क्या....उन्हे अपने जीने का मकसद बना डालो.....

आपका ..अपना साहिल.....

Monday, December 7, 2009

मेरा चाँद ...

शुक्रगुज़ार है ये साहिल उस खुदा का , जो वो तुझे मेरी ज़िंदगी में लाया,
......तेरे इस हसीन चेहरे हो मेरी आदत है बनाया,
सारे जहाँ का नूर तुझमे समाया है...इसे देखकर तो वो चाँद भी शरमाया है...
....जलता है सारा आसमान तेरी चाँदनी से...
..........क्यूंकी मेरा चाँद सिर्फ़ मेरी ज़िंदगी रोशन करने आया है..... आपका साहिल

Saturday, May 2, 2009

...आदत .....

इक आदत सी हो गयी है जीतने की.....
....किअब हारना बर्दाश्त नही...
इक आदत सी हो गयी है तुझे देखने की....
......कि तुझे बिन देखे चैन आता नही...
उस भवरें को तो फूलों की आदत है...
...क्या सच में वो ही उसकी असली चाहत है??
उस फूल की आदत है भवरें को प्यार देना ...
....भवरें की आदत बन गया है उस प्यार को निभाते रहना .....
क्यूँ किसी की आदत को आदत बना पाना इतना मुश्किल होता है...
...क्यूँ की इसी से सच्चा इश्क़ ज़ाहिर होता है....
अक्सर चाहत की ये आदत ..आशिक़ का दिल दुखती है..
...जाने अंजाने उसकी याद आ ही जाती है...
अब नादिया की तो आदत है दरिया में समा जाना...
...बे-परस्त बहते जाना ...और कभी ना इतराना .....
आदत किसी को बनाना है अपनी तो ऐसी बनाओ...
....तकलीफ़ ना हो उस से ...और खुद को भी खुश रख पाओ...
अब लिखना आदत सी बन गया है मेरी...
....ताकि दिल से निकाल पाउन ये मुहब्बत तेरी....
अब मेरी आदत को तो तेरी आदत की आदत है...
....क्या तेरी भी मेरी जैसी कोई आदत है...????............साहिल

Friday, May 1, 2009

...दूरियाँ .....

दूर जा रहे हैं वो हमसे , कि किसी को वादा कर दिया,
.....पहले ही तन्हाईयां कम ना थी ....जो तुमने फिर से तन्हा कर दिया,...
हमको तेरी यादों का नही..... तेरा साथ चाहिए.......
.......अगर यकीन ना हो तो बीता वक़्त याद फरमाइए....
जब हमारी नज़रें तुमको उस भीड़ में ढूँढा करती थी....
......तुम भी सब को भूल कर हमारे पास आ जाया करते थे.....
वो वक़्त कितना अजीब था ...जब तू मेरे करीब था.....
....तब ना हमने कुछ कहाथा , ना तुमने कुछ समझा था.......
आज जान करभी सब कुछ ...तुम चले ही जाओगे ...
.....हमको फिर ख्वाबों से निकाल कर....तन्हा कर जाओगे.....
पर शायद दूर जाकर तुम हमको भूल जाओगे...
.......पर दावा है हमारा कि...इतनी आसानी से हमको ना भुला पाओगे...

इंतज़ार तेरा हमेशा रहेगा हमको.....
.....जब भी आओगे वापस...हमको यहीं खड़ा पाओगे.........साहिल

Saturday, April 4, 2009

...अदायगी या इनायत? ....

अदायगी उसकी ऐसी की कितनो को दीवाना कर जाए...
....नज़र उठाये तो कितनो को मदहोश कर जाए ...
इनायत तो तब हो उपर वाले की .....
...की हम उनको कहें और वो इनकार न कर पाएं.....

उसका गुमसुम रहना दिल में कई सवाल जगाये....
....न जाने क्यूँ इस खामोशी में ये दिल बस उसका ही होता जाए....
यूँ उसके लवों से हर लफ्ज़ निकले ये ज़रूरी नहीं....
पर इतनी इनायत कर ऐ खुदा...की ये दिल उसकी खामोशी को भी समझ पाए ...

कहना वो भी बहुत कुछ चाहे ....न जाने क्यूँ वो न कह पाए...
.....किसी को पाकर बिछड़ जाने का दर्द शायद उसको भी है सताए...
अब और इंतज़ार तो मेरा दिल भी न सह पाए....
...कहीं ऐसा न हो की आप आयें और हम खामोश हो जाएँ......साहिल

Tuesday, March 31, 2009

...शिकायत....

शिकायत करूँ मैं कैसे तुझसे....
....गिला अब करूँ मैं कैसे?
तुझको तो मेरे दर्द का एहसास भी नही ....

बस कुछ दूर तक मैं चलता गया....
...सोचा था की शायद तेरा साथ होगा...
पर ना तू थी ना तेरा साया,
....बस था तो..मैं और मेरा साया....

कुछ दूर जाने के बाद सोचा था मैने ,
...अब वापस जाने का वक़्त है....
पर सच्चाई से रूबरू होने के बाद पता चला ,
उस मोड़ से वापस आना मुमकिन ही ना था ....

क्या मुमकिन है, सागर की लहरों का बिल साहिल से मिले लौट आना, ???
....ज़िंदगी में आगे निकलने के बाद ,वापस लौटना बहुत मुश्किल होता है....
क्यूंकी तब तब तक आपके दिल पर...
........आपका नही ..किसी और का राज़ होता है....साहिल

Sunday, February 22, 2009

dil - e- naadan

अपनी इस नादानी को ...वक़्त का फेर न कहना ......
....तेरी इस नादान सूरत ने तो न जाने कितनो को घायल कर दिया....

यूँ तेरी नादानी को न समझना ...मेरी सजा बन गयी.....
.....इस नाचीज़ की जान गयी ...और तेरी वो अदा बन गयी....

क्यूँ सताते हो किसी को इतना ..की बेचारा खुद का भी न हो पाए.....
....कौन है ऐसा जो तुमको हम से ज्यादा मुह्हबत कर पाए.....

तेरी एक ना से तो मैंने वो खोया, जो कभी मेरा था ही नहीं....
....पर तुने तो इस ना से वो खोया है, जो शुरू से सिर्फ तेरा था ....

यूँ किसी की बे इन्तहां मुह्हबत पाना ...तेरी खुश किस्मत है....
.....पर इ नादाँ ...किसी को उतना ही प्यार करना तो खुदा की इबादत है.......साहिल