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Sunday, February 22, 2009

दर्द-ऐ-बेजुबान पत्थर

जब टूट कर कोई कांच किसी पत्थर पे खनकता है....
..सोचो की दर्द उनमे ..किस बदनसीब को ज्यादा होता है....

कांच तो हर ओर बिखर कर ये दर्द सब को दिखाता है...
...पर बेजुबान पत्थर तो दर्द को सीने में दबाता है....

चाह कर भी दर्द बयां कर न पाए वो दुनिया से ....
...जुल्मी दुनिया को तो सारा दर्द बस उस कांच का दिखता है....

दूर रो कर जब कभी अपना दर्द-ऐ-हाल बयां करते है....
...दुनिया वाले पत्थर के रोने को भी झरने का नाम दे देते हैं....

जो बदलना चाहे साहिल दुनिया के इस दस्तूर को....
...ये दुनिया वाले सारे मिलकर बदल देंगे साहिल के इस फितूर को....साहिल

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